हास्य व्यंग्य
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कल चमन था, आज सब उजडा हुआ।
देखते ही देखते , गंजा हुआ…।।
कल चमन था…
झड गये चंद बाल भी, तो गम नहीं ?
गम है गंजेपन का क्यूँ,चर्चा हुआ ।वो चमक ? की बर्तन कोई मांझा हुआ,..मामा से पहले बुढा भांजा हुआ…कल चमन था..?
कंघीयों को भी तनिक, फुरसत मिली।
आईने को भी जरा,राहत मिली..
गंजेपन में भी तो एक बच्चा हुआ..?सब ,ये कहते जो हुआ अच्छा हुआ…कल चमन था….
इक युवक की आँख में ,तिनका गया ।
आँख मारी उसने, युं समझा गया।।
जानबूझकर बूढेने जब मारी आँख..?तो ,आँख में तिनका गया यह भ्रम हुआ…
कल चमन था….
…रचना..
महेशकुमार लांजेवार
गोंदिया.(महाराष्ट्र)